ग्रामीण भारत के विकास में धार्मिक विरासतों की महत्ता : बिंदुवार विश्लेषण एवम सुझाव
ग्रामीण भारत के मंदिरो में जीर्णोद्धार एवं धार्मिक विरासतों के संरक्षण से सामाजिक,आर्थिक एवं रोजगार के साधन उत्पन्न किये जा सकते है, इसके साथ ही धार्मिक स्थलों के विकास से पर्यटकों को नया आयाम प्रदान किया जा सकता है। धार्मिक यात्रियों से ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार के साधन उत्पन्न किये जा सकते है एवं आर्थिक विकास किया जा सकता है। विलेज-टूरिज्म, एग्री-टूरिज्म की असीम संभावनाएं उपलब्ध हो सकती है।
ग्रामीण भारत देश की अर्थव्यवस्था का मुख्य केंद्र है। किसी भी प्रदेश में गाँव के विकास पर निर्भर करती है। देश मे कई ऐसे प्रदेश है जहाँ पर गाँव की स्थिति शहरों से ज्यादा बेहतर है।
फिलहाल अभी हम बात मध्यप्रदेश की कर रहे है। ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व कम होता है, और शुद्ध वातावरण के साथ लोग धार्मिक आयोजन में व्यस्त रहते है। स्वास्थ, योग, एवं ध्यान की दृष्टि से ग्रामीण क्षेत्र, शहरी क्षेत्रों से अधिक प्रगतिशील है।
जब हमारी टीम पर ग्रामीण क्षेत्रों के मंदिरों रिसर्च कर रही थी, तब हमें सागर में एक जैन संस्था के युवाओं से मिलने का मौका मिला, यह ग्रुप ग्रामीण जैन मंदिरों के जीर्णोद्धार एवं उनके रख रखाव का कार्य कर रहा है, उनके संयोजक से बात करने पर हमें काफी सारी जानकारियां प्राप्त हुई, उन्ही से प्रेरणा लेकर हमारी टीम ने इस योजना को नाम दिया- "ग्राम तीर्थ पथ". सरकारों को इस क्षेत्र में ध्यान देना आवश्यक है।
इस ग्रुप के संयोजक से बात करने पर हमने उनके कार्य और योजना के विषय पर विस्तृत चर्चा की, और काफी रोमांचक बातें सामने निकल कर आई- जैसे उनका कहना था कि हमारे पूर्वजों की विरासत को सहेज कर रखने की ज़िम्मेदारी अब हमारी है, आपको काफी आश्चर्य होगा, की आज भी हमारे गाँवो में ऐसे- ऐसे ऐतिहासिक दृष्टि से महत्व्पूर्ण मंदिर है, जिनकी जानकारी प्रचार प्रसार के आभाव में बहुत ही कम लोगो है, पहले मंदिरों का निर्माण वास्तु एवं कलात्मक दृष्टि से किया जाता था, पुराने मंदिरों को प्रकृति के अनुकूल वातावरण के आधार पर भी निर्मित किया जाता था, हर एक मंदिर की स्वयं की भूमि होती थी उस भूमि पर खेती होती थी, जिसकी आय से मंदिर का व्यय निकाला जाता था, साथ ही सामाजिक कार्य जैसे गरीब परिवारों के यहाँ शादी विवाह आदि में दान किया जाता था, उन मंदिरों में बनी धर्मशाला या अतिथि भवनों में दूर-दूर से दर्शनार्थी लोग आकर कई दिनों तक गाँव की शुद्ध हवा पानी मे अपना समय व्यतीत करते थे, उन्हें शुद्ध भोजन के साथ वहाँ के भजन मंडली में आनंद प्राप्त होता था। समय के बीत जाने के साथ-साथ एवं शहरों के विकास पर जोर देने से गाँव से पलायन शुरू हो गया, और धार्मिक आध्यात्मिक विरासतें जीर्णशीर्ण होने लगी। यह सत्य बात है कि बिना रखरखाव के अच्छे से अच्छे महल भी खंडहरों में बदल जाते है।
वाकई यह एक सत्य बात है- गाँव मे महलों नुमा पुरानी कोठियां आज भी जीर्णशीर्ण अवस्था मे देखने मिल जाती है, भव्य शिखरों वाले मंदिर में देखने मिल जाते है, यह किसी एक समाज मे नही अपितु हर एक समाज द्वारा निर्मित विरासतें थी, जिन पर ध्यान देना अतिआवश्यक हो गया है।
वाकई अब कोई शहर छोड़कर गाँव मे जाना चाहता है ? बेशक! क्या आपने सुना नही की आजकल विदेशों से भी लोग गाँव मे आकर रुकते है, वहाँ के कलचर और खेती वाड़ी के तौर तरीकों को अपने बच्चों को बताते है और मजे की बात यह कि वो इसके लिये अच्छी खासी रकम भी अदा करते है। यह काफ़ी आश्चर्यजनक है जानकारी है, यदि ऐसा हुआ तो ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार-व्यवसाय को बढ़ाया जा सकता है। और जैसे कोविड के पश्चात लोग प्राकृति की गोद मे वापिस जाने लगे है। और यह एक सुनहरा अवसर है यदि सरकारें इस बात पर ध्यान दे कि गाँव के विकास में अपनी ऊर्जा लगाए तो एक नई विलेज टूरिज्म के साथ साथ धार्मिक कॉरिडोर को विकसित किया जा सकता है। हमारी टीम ने उनके द्वारा चलाये जा रहे प्रोजेक्ट पर जानकारी माँगी, तब उन्होंने बताया कि यदि हमारी (यूनाइटेड भारत) की टीम उनके इस प्रोजेक्ट को राजनैतिक एवं सामाजिक विश्व पटल पर रखती है, तब वो जरूर अपने प्रोजेक्ट को हमारे साथ साझा करने तैयार है। क्योंकि उनका मानना है कि यह कार्ययोजना हर एक आख़री शक़्स तक पहुँचे ताकि, लोग अपने पूर्वजों की बनाई विरासत को सहेजने के साथ साथ भविष्य निर्माण एवं नये रोजगार के साधन उपलब्ध करवा सके। और उनका यह कथन काफी रोचक लगा, जो समग्र विकास के तौर पर अपनी योजना को क्रियान्वित करने का हौसला रखते है।
संस्था चार चरण में कार्य करती है। प्रथम चरण में उनका कार्य सर्वेक्षण एवं शोध का होता है, इसके बाद प्रचार प्रसार इसके बाद उन मंदिरों की जिओ टैगिंग एवं दिशा सूचक बोर्ड लगा कर वहाँ धार्मिक आयोजन करवाना और अंत मे सामाजिक तौर पर सबके सहयोग से धन राशि से वहाँ का जीर्णोद्धार करवाना।
उनकी कार्ययोजना के आधार और अन्य जगहों से जानकारी एकत्रित करते हुये- इस योजना को "ग्राम तीर्थ पथ" का नाम देते हुये विस्तार पूर्वक इसके आर्थिक, सामाजिक, पर्यटन, एवं ऐतिहासिक दृष्टि को ध्यान में रखते हुये अपनी योजना का विस्तार किया-
जिसके मुख्य बिंदु इस प्रकार है :
1- न्यास ट्रस्ट समितियों द्वारा प्रबंधित पुराने मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिए प्रति वर्ष 2 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता प्रदान करना:- पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए ट्रस्ट समितियों को वित्तीय सहायता प्रदान करके, सरकार यह सुनिश्चित कर सकती है कि इन ऐतिहासिक स्थलों का अच्छी तरह से रखरखाव किया जाए और वे पूजा और सांस्कृतिक महत्व के महत्वपूर्ण केंद्र बने रहें। वित्तीय सहायता का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है, जिसमें संरचनात्मक क्षति की मरम्मत, प्राचीन कलाकृतियों को संरक्षित करना, मंदिर परिसर को बढ़ाना और भक्तों के लिए सुविधाओं में सुधार करना शामिल है।
2- सभी ग्रामीण मंदिरों की एक सूची बनाना और एक "ग्राम तीर्थ पथ" का निर्माण करना, साथ ही सभी मंदिरों को जियोटैग करना और आसान पहुंच के लिए एक रोड मैप बनाना:- इन महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों की पहचान और संरक्षण के लिए ग्रामीण मंदिरों की एक व्यापक सूची बनाना आवश्यक है। ग्रामीण तीर्थ पथ का निर्माण करके, सरकार इन मंदिरों तक आसान पहुंच की सुविधा प्रदान कर सकती है, जिससे भक्तों और आगंतुकों को ग्रामीण क्षेत्रों की समृद्ध आध्यात्मिक विरासत का अनुभव हो सके। मंदिरों को जियोटैग करने और एक रोड मैप बनाने से नेविगेशन में मदद मिलेगी और प्रत्येक मंदिर के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को उजागर करके पर्यटन को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।
3- प्रत्येक ग्रामीण मंदिर के लिए सीमेंटेड सड़कों का विकास और उचित स्वच्छता प्रबंधन सुनिश्चित करना: प्रत्येक ग्रामीण मंदिर तक जाने वाली सीमेंटेड सड़कों के प्रावधान से भक्तों के लिए कनेक्टिविटी और पहुंच में सुधार होगा, जिससे अधिक लोगों को धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने और भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा। इसके अतिरिक्त, मंदिरों में और उसके आसपास स्वच्छता बनाए रखने से उपासकों के लिए एक स्वच्छ और सुखद वातावरण बनता है, जिससे उनका समग्र अनुभव बढ़ता है। सड़क के बुनियादी ढांचे और स्वच्छता प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने से ग्रामीण मंदिर पारिस्थितिकी तंत्र और मजबूत होगा।
4- ग्रामीण मंदिरों के लिए चार कमरे के आवास और एक हॉल के निर्माण के लिए भवन या भूमि उपलब्ध कराना:- ग्रामीण मंदिरों के पास आवास (धर्मशाला) स्थापित करना उन भक्तों की सुविधा के लिए महत्वपूर्ण है, जिन्हें धार्मिक कार्यक्रमों और अनुष्ठानों के लिए रात भर रुकने की आवश्यकता हो सकती है। ऐसी सुविधाओं के निर्माण के लिए भवन या भूमि प्रदान करके, सरकार यह सुनिश्चित कर सकती है कि तीर्थयात्रियों के पास उपयुक्त आवास विकल्प हों, धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दिया जाए और स्थानीय अर्थव्यवस्था का समर्थन किया जाए। ये आवास सामुदायिक समारोहों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन स्थल के रूप में भी काम कर सकते हैं, जिससे सामाजिक एकजुटता को बढ़ावा मिलेगा।
5- पदयात्रा करते हुये साधु-संत (विशेषकर जैन श्रमण और नागा साधुओं)और पैदल यात्रा करने वाले तीर्थयात्रियों के रात्रि प्रवास के लिए मुख्य सड़क मार्ग पर समर्पित भूमि या भवन बनाना: साधु-संत और तीर्थयात्री अक्सर आध्यात्मिक यात्रा पर निकलते हैं और उन्हें आराम, रात्रिविश्राम करने लिए स्थानों की आवश्यकता होती है। समर्पित आवास स्थापित करके या मुख्य सड़क मार्गों के किनारे भूमि प्रदान करके, सरकार प्रदान कर सकती है, उनकी सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित कर सकती है। इस तरह की पहल धार्मिक प्रथाओं के प्रति सम्मान प्रदर्शित करती है और क्षेत्र के समग्र आध्यात्मिक वातावरण में योगदान करती है।
6- सभी मंदिरों में भजन मंडलियों (भक्ति गायन समूहों) को पंजीकृत करना और उनके लिए विशेष संगीत सामग्री की व्यवस्था करना, साथ ही प्रत्येक शहर में सभी भजन मंडलियों की वार्षिक सामूहिक सभा का आयोजन करना: भजन मंडलिया, मंदिरों के अंदर भक्ति प्रथाओं और सांस्कृतिक समारोहों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन समूहों को पंजीकृत करने और उन्हें विशेष संगीत संसाधन प्रदान करने से भक्ति गायन की गुणवत्ता बढ़ सकती है और पारंपरिक संगीत रूपों को संरक्षित किया जा सकता है। विभिन्न शहरों की भजन मंडलियों की वार्षिक सामूहिक सभा का आयोजन भक्तों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान, एकता और समुदाय की भावना को बढ़ावा देता है, जिससे एक जीवंत भक्तिपूर्ण माहौल बनता है।
7- राष्ट्रीय राजमार्गों, राज्य राजमार्गों और ग्रामीण सड़कों के किनारे सभी मंदिरों के मार्गों को इंगित करने वाले दिशात्मक साइनबोर्ड स्थापित करना। भक्तों और यात्रियों को नजदीकी मंदिरों तक मार्गदर्शन करने के लिए प्रमुख सड़क नेटवर्क के साथ दिशात्मक साइनबोर्ड लगाना आवश्यक है। ये साइनबोर्ड आसान नेविगेशन सुनिश्चित करेंगे, धार्मिक स्थलों की दृश्यता बढ़ाना, और उन आगंतुकों को आकर्षित करके पर्यटन को बढ़ावा देना जो इस क्षेत्र से परिचित नहीं हैं। स्पष्ट और सूचनाप्रद साइनेज एक सहज तीर्थयात्रा अनुभव बनाने में मदद करता है और धार्मिक पर्यटन क्षेत्र के समग्र विकास में योगदान देता है।
8- सड़कों पर पद-विहार करते साधुओं और संतों के लिए विशेष पहुंच मार्गों की स्थापना: - साधु और संत भारत के आध्यात्मिक ताने-बाने का एक अभिन्न अंग हैं। सड़क मार्गों पर उनके लिए विशेष पहुंच मार्ग उपलब्ध कराने से उनकी यात्रा के दौरान उनकी सुरक्षा और सुविधा सुनिश्चित होती है। इन मार्गों में विश्राम क्षेत्र, भोजन और पानी की सुविधाएं और बुनियादी सुविधाएं शामिल हो सकती हैं जो उनकी भ्रमणशील जीवन शैली का समर्थन करती हैं। उनके पद-विहार-आहार को सुविधाजनक बनाकर, सरकार धार्मिक परंपराओं के प्रति सम्मान प्रदर्शित कर सकती है और भारत की आध्यात्मिक विरासत के संरक्षण में योगदान दे सकती है।
9- कब्जा की गई मंदिर ट्रस्ट की जमीनों को सरकार द्वारा मुक्त करना और उन्हें ट्रस्टों को वापस करना:- मंदिर ट्रस्ट की जमीनों की वसूली और वापसी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इन भूमियों में स्थानीय समुदायों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने की अपार संभावनाएं हैं। ऐसी ज़मीनों को मुक्त कराने और उन्हें संबंधित ट्रस्टों को बहाल करने की सुविधा देकर, सरकार इन संस्थानों को रोजगार पैदा करने और स्थानीय आर्थिक विकास में योगदान देने सहित समाज के लाभ के लिए भूमि का उपयोग करने के लिए सशक्त बना सकती है।
10- ग्रामीण मंदिरों का संरक्षण करना और विशेष धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रमों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन करने वाले लोगों को फिर से जोड़ना:- हमारी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और आध्यात्मिक पवित्रता बनाए रखने के लिए ग्रामीण मंदिरों का संरक्षण महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन कर चुके लोगों को फिर से जोड़ने के उद्देश्य से धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन रोजगार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और ग्रामीण समुदायों के पुनरोद्धार के अवसर पैदा करता है। ये पहल ग्रामीण आबादी के बीच अपनेपन की भावना को बढ़ावा देती हैं और रोजगार और आजीविका के लिए नई संभावनाओं को बढ़ावा देती हैं, जिससे शहरी क्षेत्रों में प्रवासन कम होता है।
11- प्रत्येक जिले में संस्कृति, साहित्य और प्रदर्शन कला के विकास के लिए नए योग, संस्कृत, वैदिक, ज्योतिष विद्यालयों और अकादमियों की स्थापना:- योग, संस्कृत,वैदिक,ज्योतिष विद्यालयों और अकादमियों की स्थापना प्राचीन ज्ञान प्रणालियों के संरक्षण और प्रचार में योगदान देती है। ये संस्थान सीखने, पारंपरिक प्रथाओं को बढ़ावा देने और विभिन्न विषयों में अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के केंद्र के रूप में कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त, समर्पित अकादमियों के माध्यम से संस्कृति, साहित्य और प्रदर्शन कलाओं पर ध्यान केंद्रित करने से इन कला रूपों को पुनर्जीवित करने, पारंपरिक ज्ञान का प्रसार करने और कलाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए मंच बनाने में मदद मिलती है। यह सांस्कृतिक पुनरुत्थान ग्रामीण समुदायों के बीच गर्व और पहचान की भावना को प्रेरित कर सकता है।
इन बिंदुओं के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक महत्व इस प्रकार हैं:
आर्थिक महत्व:
1- ग्रामीण क्षेत्रों में तीर्थयात्रा और पर्यटन गतिविधियों में वृद्धि से रोजगार के अवसर पैदा होंगे और स्थानीय व्यवसायों को समर्थन मिलेगा और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।
2- आवास सुविधाओं और परिवहन नेटवर्क जैसे पर्यटन बुनियादी ढांचे के विकास से निवेश आकर्षित होगा और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।
3- सांस्कृतिक और धार्मिक स्थलों की उपस्थिति उद्यमिता के अवसर पैदा कर सकती है, जैसे स्मारिका दुकानें, स्थानीय हस्तशिल्प और खाद्य प्रतिष्ठान, जिससे आय सृजन और आर्थिक विकास हो सकता है।
4- पारंपरिक व्यंजनों और स्थानीय व्यंजनों का पुनरुद्धार पाक पर्यटन में योगदान दे सकता है, जिससे ग्रामीण समुदायों के लिए अतिरिक्त राजस्व स्रोत उत्पन्न होंगे।
सामाजिक महत्व:
1- धार्मिक आयोजनों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से ग्रामीण और शहरी आबादी के बीच संबंध मजबूत होने से सामाजिक सद्भाव और एकता की भावना को बढ़ावा मिलता है।
2- मंदिरों और धार्मिक स्थलों तक पहुंच बढ़ने से समावेशिता को बढ़ावा मिलता है और विविध पृष्ठभूमि के व्यक्तियों को आध्यात्मिक प्रथाओं में संलग्न होने की अनुमति मिलती है।
3- ग्रामीण मंदिरों और सांस्कृतिक प्रथाओं के संरक्षण और प्रचार से स्थानीय समुदायों के बीच पहचान और गौरव की भावना बनाए रखने में मदद मिलती है, जिससे प्रवासन और शहरीकरण से संबंधित सामाजिक चुनौतियाँ कम होती हैं।
4- प्रवासियों को उनकी ग्रामीण जड़ों से फिर से जोड़ने के उद्देश्य से सामाजिक कार्यक्रम सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करते हैं, सामुदायिक बंधन को बढ़ाते हैं और सांस्कृतिक वियोग से उत्पन्न होने वाले सामाजिक मुद्दों को कम करते हैं।
राजनीतिक महत्व:
1- ग्रामीण क्षेत्रों में महत्वपूर्ण मतदान आबादी को पहचानने वाले राजनीतिक दल उन नीतियों और पहलों को प्राथमिकता देंगे जो इन समुदायों की जरूरतों को पूरा करते हैं, उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व और प्रभाव को बढ़ाते हैं।
2- ग्रामीण मतदाताओं की आकांक्षाओं के साथ जुड़ना राजनीतिक दलों के लिए समर्थन जुटा सकता है, क्योंकि ग्रामीण विकास परियोजनाओं में उनकी भागीदारी जमीनी स्तर के मुद्दों के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
3- धार्मिक संस्थानों और उनके अनुयायियों की चिंताओं को संबोधित करके, राजनीतिक दल धार्मिक समुदायों के साथ अपने बंधन को मजबूत कर सकते हैं और चुनाव के दौरान उनका विश्वास और समर्थन हासिल कर सकते हैं।
4- सरकारी पहल के माध्यम से सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक प्रथाओं को बढ़ावा देना भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
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