म.प्र. विधानसभा चुनाव 2023 एवं जनजातीय समुदाय
जनजातीय समुदाय के सामाजिक और धर्म से संबंधित सभी रीति-रिवाजों और त्योहारों को बड़े पैमाने पर सभी वर्गों की भागीदारी के साथ आयोजन यदि पिछले कुछ वर्षों को छोड़ दिया जाए तो ना के बराबर ही रहे है।
चुनावों में जातीय समीकरण सदैव ही राजनीतिक पार्टियों की रणनीति का प्रमुख अंश रहा है। मध्य प्रदेश की सत्ता में जनजातीय समुदाय निर्णायक भूमिका में होने की स्थिति का एहसास सभी राजनितिक दलों को पहले भी करवाता रहा है। म.प्र. विधानसभा चुनाव 2023 में सभी दलों का ध्यान जनजातीय समुदाय पर है। 2003 में भाजपा की मध्य प्रदेश में वापसी का रास्ता प्रशस्त करने में जनजातीय समुदाय ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 2003 में जनजातीय समुदाय की 37 सीटों पर कब्ज़ा करने वाली भाजपा 2018 में 16 सीटों पर सिमट कर रह गयी। नौकरशाही की उदासीनता एवं राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी जनजातीय समुदाय का भाजपा से मोहभंग होने के प्रमुख कारण रहे।
जनजातीय समुदाय के लिए आरक्षित 47 सीटों के अतिरिक्त प्रदेश में लगभग 46 सीटों पर जनजातीय समुदाय की उपस्थिति 10%-20% है एवं लगभग 32 ऐसी सीटें हैं जिनमें जनजातीय समुदाय की उपस्थिति 21%-35% तक है।
सत्ता हासिल करने के बाद सरकार जनजातीय समुदाय के कमजोर नागरिकों एवं समाज को मजबूत करने और समुदाय को समाज की मुख्य धारा में शामिल करने में विफल रही। जनजातीय समुदाय के सामाजिक और धर्म से संबंधित सभी रीति-रिवाजों और त्योहारों को बड़े पैमाने पर सभी वर्गों की भागीदारी के साथ आयोजन यदि पिछले कुछ वर्षों को छोड़ दिया जाए तो ना के बराबर ही रहे है। 2023 विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए पिछले कुछ समय में जनजातीय समुदाय के सभी संतों, गुरुओं तथा समुदाय के प्रतिष्ठित एवं प्रभावशाली व्यक्तियों की जयंती एवं पुण्यतिथि पर वृहद स्तर पर आयोजनों की मंशा को जनजातीय समुदाय अच्छी तरह समझता है एवं इस समझ की झलक म.प्र. विधानसभा चुनाव 2023 के परिणामों में देखने को मिल सकती है।
जनजातीय समुदाय की सुदूर व विषम जंगली क्षेत्रों में आत्मनिर्भर जीवन के साथ एकांत जीवनशैली में बदलाव एवं उत्थान हेतु प्रशासनिक तंत्र का संपर्क मुख्य रूप से अधिकारवादी व शोषक प्रवृत्ति के साथ ही हुआ जिसके परिणामस्वरूप समस्याएं कुछ कम ज़रूर हुयी किन्तु ख़त्म नहीं। जहाँ एक ओर समुदाय की निर्भरता कृषि है वहीं भूमि का अभाव या अल्प भूमि एक बड़ी समस्या है। कृषि के उन्नत तरीके और वैज्ञानिक खेती एक बड़ा कदम साबित हो सकता था यदि सरकार की स्पष्ट मंशा एवं प्रशासन की दृढ़ इच्छाशक्ति होती। नेट हाउस, पोली हाउस जैसी अनेक योजनायें कागज़ पर सिमट कर रह गयीं। हितग्राही के लिए सब्सिडी हेतु बैंक एवं सरकार के मध्य समन्वयक की नीति हमेशा ही अस्पष्ट एवं जटिल रही।
कई प्रयासों के बाद भी जनजातीय समुदाय की वित्तीय कठिनाइयाँ अल्प परिवर्तन के साथ जस की तस बनी हुई हैं। हस्त शिल्प, लघु कुटीर उद्योग, पशुपालन एवं अन्य योजनायें प्रशिक्षण और समन्वयन के अभाव में दम तोड़ चुकी है। यदि शुरू भी हुयी तो बाजार उपलब्ध करवाने में सरकार एवं प्रशासनिक तंत्र पूर्णतः विफल रहा है। जनजातीय समुदाय के आर्थिक उत्थान के लिए सरकार की प्रतिबद्धता में कमी या उदासीनता यथावत है।
जनजातीय समुदाय के जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं जैसे पीने के पानी और पर्याप्त खाद्यान्न की व्यवस्था भी अनिश्चितता के दायरे से बहार नहीं निकल पाई है। आर्थिक पिछड़ेपन तथा आजीविका के असुरक्षित साधनों के कारण स्वास्थ्य एवं पोषण की समस्या अत्यंत गंभीर है। कुपोषण का कलंक जस का तस बना हुआ है। न्यूनतम जरूरतों के प्रावधान और पहुंच हेतु उत्कृष्ट नीति और सख्त कदम उठाने के साथ ज़मीनी स्तर पर क्रियान्वयन का इंतज़ार आज भी पहले के जैसा ही है। जनजातीय समुदाय आज भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार एवं स्वास्थ्य संस्थानों में योग्य कर्मियों और संसाधनों की उपलब्धता के लिए स्पष्ट नीति के साथ क्रियान्वयन की प्रतीक्षा में है।
सभी क्षेत्रों के साथ शिक्षा भी जनजातीय समुदाय के लिए दिवा स्वप्न जैसा ही है जो है भी और नहीं भी। जनजातीय समुदाय के बच्चों तक सरकारी स्कूलों के साथ-साथ आवासीय विद्यालयों की सुगम उपलब्धता एवं उच्च शैक्षणिक गुणवत्ता की प्राप्ति अभी दूर है। डिजिटाइज्ड कक्षाओं की बात करना भी हास्यास्पद होगा। मध्यान्ह भोजन योजना की गुणवत्ता और आयोजन प्रशासनिक तंत्र एवं स्व-समूहों के निजी स्वार्थ की भेंट चढ़ चुका है।
सरकारें आती रही हैं, सरकारें आती रहेंगी। जनजातीय समुदाय के जीवन यापन एवं जीवनशैली में अल्प परिवर्तन के साथ ज्यादातर क्षेत्रों में स्थितियाँ यथावत बनी हुई है। स्पष्ट नीतियों के साथ सरकारों की प्रतिबद्धता एवं प्रशासन की दृढ़ इच्छाशक्ति से ही सकारात्मक परिवर्तन संभव है। हर चुनाव अपने साथ परिवर्तन का सन्देश लेकर आता है जिसका इंतज़ार जनता बड़ी बेसब्री से कर रही है।
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